हिन्दू धर्म की त्रिमूर्ति ? कौन

हिन्दू धर्म की शुरुआत कहाँ से होती है? और कहाँ से कहाँ से पहुँच सकती है ये कहना लगभग असम्भव सा है ?  जब हिन्दू धर्म की शुरुआत की और देखते है तो सबसे पहले हम त्रिमूर्ति के बारे में जानते है ? हिन्दू धर्म के भौतिक रूप जो की वर्तमान में उपस्थित है को छोड़ देते है |

त्रिमूर्ति , मतलब तीन ऐसे देवताओ की कल्पना जो अपने आप में श्रेष्ठ है | 
  • ब्रह्मा 
  • विष्णु 
  • शिव
ये तीनो त्रिदेव अपने आप में एक संसार लिए हुए है | और इतना विशाल संसार की आप चाहे तो पूरा जीवन लगा सकते है इन्हें समझने में | असल में ये हमारे मस्तिष्क की तीन सर्वश्रेष्ठ स्तिथि के प्रतिबिम्ब है | ब्रह्मा जहाँ एक और हमारे चतुर्दशी और बहु आयामी बुद्धि को दिखाता है  जिसे वो कुछ भी नया बना सकता है , नया सोच सकता है , नए नए आयाम खोज सकता है | वो गुण सिर्फ ब्रह्मा में है किसी और देवता या बाकी दोनों त्रिमूर्ति में नहीं है | ब्रह्मा ही सब कुछ जानते है भूत ,वर्तमान और भविष्य  सब कुछ लेकिन वो कुछ कर नहीं सकते , आप उनका फायदा नहीं उठा सकते | दुनिया भर की कहानियाँ हमें देखने को मिलती है जहाँ ब्रह्मा जानते हुए भी किसी को भी अमरता या शर्तो वाली मृत्यु के वरदान देते है | ब्रह्मा हमारे मन का बहुआयामी प्रतिबिम्ब है | जिसके अन्दर बादलो का सीना चीरकर उड़ने की शक्ति है , नदी के प्रवाह को लयबद करने की शक्ति है , अग्नि को ठंडी करने की शक्ति है तो हवा को सुखा देने की ताकत भी ये रखता है | अगर एक छोटे से वाक्य में कहूँ तो ब्रह्मा मन की विशालकाय दुनिया का एक कोना भर है |इंसान अपने प्रखर बुद्धि से हर समस्या का हल निकालता आया है ,और अपनी बुद्धि को बढ़ाता ही जा रहा है | अगर इसको बुद्धि के स्तर पर समझना चाहे तो ब्रह्मा एक प्रखर बुद्धि का प्रतिबिम्ब है |

ब्रह्मा के गुणों को हम जीवन एक अध्याय से और समझ सकते है वो गृहस्थ जीवन से पहले का समय | ये वो समय है जब किसी भी व्यक्ति को अपने बाकी जीवन जीने के बुद्धि का विकास करना ही पड़ता है ताकि वो आगे चलकर जीवन आसानी से व्यतीत सर सके| ब्रह्मा के सारे गुण एक एक विद्यार्थी को अपने जीवन में जरुर उतारने चाहिए | हम कैसे बनेंगे ये सिर्फ हमारे ऊपर ही निर्भर नहीं करता और ना ही हमारे बस रहता है ,लेकिन हम किस तरह मरेंगे ये ,इसकी तैयारी हमें आजीवन करनी होती है | लेकिन वो तैयारी सबसे बेहतर हो सके इसके लिए प्रखर बुद्धि का होना और उसका विकास निरंतर होना बेहद जरुरी आयाम है | अगर जीवन के चक्र को तीन हिस्सों में बांटे तो हम कह सकते है कि एक हिस्सा ब्रह्मा का भी होगा |

हिन्दू धर्म में दो सम्प्रदाय है| एक वैष्णव दुसरे शैव , वैष्णव जो विष्णु के रास्ते को पसंद करते है दूसरा वो जो शिव के रास्ते को पसंद करते है | इन रास्तो के बारे में आगे बात करेंगे |
विष्णु, एक बहु आयामी प्रतिभा का प्रतिबिम्ब है | अगर एक साधारण भाषा में कहें , कि आपको विष्णु कहाँ मिलेंगे , तो जवाब है " आप ही विष्णु है ?" अगर आप ही विष्णु है ? तो आप कौन है ? विष्णु की कल्पना एक ऐसे देवता के रूप में की गयी जिससे सब की उत्पति हुई है |ब्रह्मा की उत्पति भी विष्णु से ही हुई है | विष्णु एक तत्व के रूप में विद्यमान है जो हर कण में उपस्थित है जिसे आज का विज्ञान "गॉड ऑफ़ पार्टिकल " कह रहा है | उर्जा का रूप जो की नकरात्मक भी है और सकरात्मक भी , वो शून्य भी है और अनंत भी | या अगर भक्त की द्रष्टि से देख्ने तो बस वो है| 
विष्णु एक मात्र ऐसे देवता है जो कि धरती पर आते रहते है | उनके कुछ दस अवतार हिन्दू धर्म शास्त्रों में वर्णित है |उनका धरती पर आने का उदेश्य राक्षसों को मारना भर है | क्या ये ही सत्य है ? इस पर विचार बाद में | विष्णु एक ऐसे पथ प्रदर्शक के रूप में वर्णित है जिसे खुद नहीं पता की आगे क्या होने वाला है ? लेकिन जो होगा वो उसे अपने हिसाब से बना लेते है | विष्णु का ये गुण , मनुष्यों के प्रतिदिन की जीवन शैली , उसमे होने वाली मुश्किलें ,लाभ हानि, घटना दुर्घटना , हंसी -ख़ुशी, को दिखाता है | या ये भी कह सकते है जीवन मुश्किलों से भरा हुआ है , इसके रास्ते हमें खुद ही ढूंढने है और आगे बढ़ते जाना है | विष्णु एक दस अवतार में एक विवादश्प्द है "गौतम बुद्ध " | क्यूंकि इन्होने किसी ईश्वरीय या मालिक का सिद्धांत को नाकारा है | तो हम नौ की बात कर लेते है | विष्णु ९ अवतारों में ७ अवतार मनुष्यों सात गुणों को दर्शाते है | लेकिन २ अवतार राम और कृष्ण जीवन जीने की अलग कला को दिखाने के लिए रचे गए है | राम के जहाँ अपने आदर्श और कर्तव्य निष्ठा ही सब कुछ है कृष्ण के लिए ऐसा नहीं है | वो हर चीज़ में लचर होने का सन्देश देते है | जगह पड़ने पर सख्त भी है और बहुत जगह नर्म भी |मौके भी बहुत देते है , हारना भी पसंद है | और जीतना भी | राम और कृष्णा के दोनों के जीवन काल में देखते है कि उन्होंने कुछ ऐसा नहीं किया जिससे कि उनके जीवन काल को एक आदर्श जीवन के रूप में समझा जा सके | राम का पूरा जीवन काल , बिना पत्नी और बच्चो के बिता | कृष्णा का जीवन काल भी अपने वंशजो को बचाने में ही बीता | 
विष्णु के कई चरित्र हमारे सामने आते है | जो जीवन कई गांठे खोलते है | जब हम विष्णु को समझने बैठते है तो हमें पता चलता है कि विष्णु कोई और नहीं |मेरे ही अन्दर छिपी किसी अच्छाई या बुराई का प्रतिबिम्ब है जो बहार आने को उछल रही है | विष्णु ,चोर, कपटी, झूठा , मुर्ख ,विवेकवान,मृदु , मैत्रीपूर्ण , करुणाशील सब है | क्यूंकि वो आप ही है | 
विष्णु को अब शरीर के हिसाब से समझते है | ब्रह्मा यदि प्रखर बुद्धि और विवेक का प्रतिबिम्ब है तो विष्णु ,धड में बसने वाले प्राण की तरह है | वो ऐसी हवा की तरह शरीर में है जिससे हमारा अस्तित्व है | 

शिव, कब आये है ? या कब आयें होंगे ये कहना मुश्किल ही नहीं , नामुमकिन | क्यूंकि शिव मस्तिष्क की उस अवस्था का नाम है जिसमे गति नहीं है | जो स्थिर है लेकिन पलक झपकते ही पूरी दुनिया घूम के आ जाता है | शिव को पहले जीवन के हिस्से की तरह समझते है |शिव एक ऐसी मुद्रा में बैठे है जिसके अन्दर प्राण नहीं है लेकिन मृत भी नहीं है | शिव की ये भंगिमा जहाँ बताती है कि गृहस्थ जीवन बहुत हो गया अब अपना जीवन जीते है | मतलब मरने से मरना सीखना , और मोक्ष की और बढ़ते कदम | शिव किसी देवता से चाहे वो ब्रह्मा हो या विष्णु से भी पहले से विद्यमान है | क्यूँ ,इस पर बात बाद में | शिव जीवन के स्थाय्तिव को भी दिखाते है | अगर हम हिन्दू धर्म की बात करें तो शिव सबसे ज्यादा स्थाई देवता है | या ये कह सकते है की उनका अपने उपर पूरा नियंत्रण है | मतलब शिव मस्तिष्क की स्थाय्तिव का प्रतिक भर है | 
शिव ,शरीर की गति को ढोने वाले, पैरो के प्रतिबिम्ब है | वो इतने स्थाई है कि कई काल निकल जाते है उन्हें एक मुद्रा में | दृढ, और निश्चयी, शिव को किसी भी अन्य देवता से अलग बनता है | 
शिव और विष्णु के रास्तो में एक मूल अंतर आता है वो है गति का | शिव जहाँ पूरी तरह से स्थिर है वहीँ विष्णु हमेशा अपने लिए दूसरा रास्ता खोल के रखते है नहीं तो खोल लेते है |


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