अपने पैसे एक्सीडेंटली मत गवाएँ| द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर
फिल्म की शुरुआत होती है लोकसभा २००४ के जीतने से जिसमे कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी और संयुक्त विकास मोर्चा(UPA) को बहुमत मिला और सोनिया गाँधी के विरोध के साथ | फिल्म में कुछ ऐसा नहीं जिसे आप नहीं जानते कम से कम मैं तो जानता ही हूँ| मैंने सरकारों को लगभग २००३ से फॉलो करा है | और आज भी कर रहा हूँ | ये फिल्म सरकार के किसी भी पहलु को दिखाने में सफल नहीं हुई है | लेकिन भक्तो की एक जमात को ये फिल्म देखने में मजा आ सकता है क्यूंकि इसमें व्हाट्सएप के जैसे डायलॉग है और ऐसी ही सिनेमेटोग्राफी देखने को मिलती है जैसे उनके द्वारा की विडियो के फुटेज में |फिल्म का अंत इसके उदेश्य को स्पष्ट कर देता है जिसमे
"पब्लिशर - चुनावों के वक़्त भी यदि किताब की सेल नहीं तो कब होगी |" इसका सलूशन कुछ ऐसे निकलता है |
"संजय बारू की जब नहीं बिकती है तो उसे सनसनीखेज बनाने के लिए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी होती है , जिसके बाद किताब तेजी से बिकती है "
वही बात फिल्म के उपर भी लागू होती है | फिल्म पैसे कमाने के लिए बनती है लेकिन इस फिल्म को सुने थिएटर ही नसीब हो रहे है |
कुछ ऐसे घटनाएं जिसमे ये फिल्म एकतरफा है |जब सोनिया गाँधी चुनाव जीतती है तो बीजेपी इसका पूर्ण विरोध करती है और मुद्दा होता है सोनिया गाँधी के विदेशी मूल का | जिसमे सुषमा स्वराज का एक ब्यान मैं कभी नहीं भूलता |
अगर सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनती है तो अपने बाल कटा लुंगी | अगर सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनना है तो उन्हें सफ़ेद साड़ी पहननी होगी , सर गंजा करना होगा और जमीन पर सोना होगा |
सुषमा स्वराज के ये ब्यान फिल्म से गायब है | बल्कि वो सब बाते गायब है जिसके बाद मनमोहन सिंह का जन्म एक प्रधानमंत्री के रूप में हुआ |इसमें सुषमा स्वराज के अपने तर्क है | लेकिन वो कितने सही है ये आपको खुद ढूंढ़कर कर तय करना होगा |
सोनिया गाँधी ने अपनी अंतरात्मा का बहाना कर प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया | जब टीवी पर ये बयान चल रहे थे | तो हमारे घर में बैठी एक आंटी ने बात कही थी , वो फिल्म में दिखाई देती है
परिवार की दोनों पीढियां हमले में निकल गई है , इसको खुद का भी डर है | कंही आत्मा बहार ना आ जाए |
ये वही लोग जब कोई भारत का नागरिक विदेश में पल बढ़कर भारत के झंडे गाड़ता है तो उसका क्रेडिट ये खुद लेते है |
अगले चैप्टर पर चलते है | न्यूक्लियर डील |
फिल्म ये दिखाने की कोशिश करती है | कि न्यूक्लियर डील पर भाजपा कांग्रेस के साथ थी लेकिन ऐसा नहीं है | न्यूक्लियर डील पर UPA के अलायन्स ने हाथ खीच लिया था और बीजेपी के लिए मौका था सरकार गिराने का , लेकिन ऐसा हुआ नहीं फ्लोर टेस्ट में मनमोहन पास हुए समाजवादी पार्टी की मदद से जो सरकार में नहीं थे लेकिन बहुत से मुद्दों पर सरकार के साथ आये , बहुत में नहीं आये |
इसमें एक तथ्य जो फिल्म में छुपा है वो है बीजेपी का फ्लोर टेस्ट में करोड़ों रुपे के बैग लेकर आना ,इन आरोपों के साथ की सरकार हमारे सांसद खरीदना चाहती है |बाद में वो सांसद जेल गए और कोई सबूत पेश नहीं कर पाए , और फ्लोर टेस्ट में सरकार बची रही |
जबकि फिल्म में भाजपा को सरकार के साथ देखा गया है | जबकि भाजपा इसका क्रेडिट लेने को आतुर थी क्यूंकि इसकी शुरुआत भाजपा के समय में हुई थी |
घोटालो की सरकार
मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल, घोटालो से भरा रहा, वो क्यूँ रहा ये बताने में ये फिल्म हिचकती है | मनमोहन सिंह की सरकार में घोटाले हुए या नहीं ये अदालत आज तक तय नही कर पायी है | लेकिन इन्हें घोटालो का नाम कांग्रेस ने खुद दिया क्यूंकि वो मनमोहन को साइड लाइन करना चाहते थे | ताकि राहुल गाँधी का राज्याभिषेक हो सके |
फिल्म का एक उदेश्य और है
फिल्म का गाँधी परिवार का मनमोहन के उपर कण्ट्रोल दिखाने के अलावा एक उदेश्य और है ,वो है, मीडिया मैनेजमेंट| इसका मतलब है जनता को वो दिखाना जो वो चाहते है |
इसमें कांग्रेस कुछ ख़ास नहीं कर पायी इसका कई कारण हो सकते है | क्यूंकि कांग्रेस आपसी गुटबंदी में फसी थी इसके अलावा कांग्रेस में २०१२-२०१४ तक सब के सब अपनी गाल बजाई कर रहे थे | कोई चुप बैठना नहीं चाहता था | मीडिया मैनेजमेंट भाजपा ने बढ़िया किया , जो मोदी सरकार में इस तरह से उभर कर आया की, कि लोग फेसबुक पर आकर मर्डर तक करने लगे |
कुल मिलाकर ये फिल्म जल्द बाज़ी में बनी फिल्म है क्यूँ इससे डायरेक्टर अपने करियर की शुरुआत कर रहे है | तो उन्ही बातो पर उनका ध्यान गया है जिसको जनता जानती है बस एक चुनावों से पहले एक रिविजन चाहती है | सिनेमेटोग्राफी और साउंड कुछ इस तरह के है जैसे हम टीवी देख रहे हो | लोग मनमोहन के बोलने का तरीके और चलने के स्टाइल पर हंस सकते है लेकिन वो इस बात के मलाल के साथ थिएटर से निकलते है |
"पिछले पाँच सालो में हम क्या थे और क्या से क्या हो गए देखते देखते "
Comments
Post a Comment