कहती है मुझसे डर लगता है ?
वो कुछ न कहती बस अपने में रहती कहती है मुझको क्यों? देखते हो एकटक होकर क्यों ? नहीं रहते अपने में खोकर सुनकर उसकी बातों को एक हँसी निकल पड़ती देखकर मेरे हाव भाव चढ़ जातें है उसके ताँव तपाक से बोलने की आदत ने मुझे हर जगह मरवा दिया जब वक्त आया उससे बोलने का एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया रात्रि का तीसरा पहर जिंदगी में फिर बदकिस्मती का कहर कभी खुद सोच ना पाते कभी अपने को बता न पाते बड़ी हिम्मत से ये दिन लाये हम जब सामने खड़ी थी वो जज्बातों को रोक ना पायें हम धड़कने कुछ इस तरह से बढ़ गयी क्या बोलना चाह रहे थे ? ओर क्या बोल गए हम ? कुछ वो सुनती रही कुछ मैं भी उसकी सुनता रहा वो चंद पलो का समय यूँ ही खींचता रहा ना जाने क्यों जज़्बात मेरे होठों पर ना आते है दिल की धड़कने एक थक्का छोड़ जाती है सोचते थे कौतुहल बंद हो जायेगा उससे बात करते-२ वो दे गई ऐसा गम आज तक भर नहीं पाया ओर रोते -२ थक गए हम !!